आनी के शमशरी महादेव का प्राचीन इतिहास Samshari Mahadev Temple Anni History
शमशरी महादेव का प्राचीन इतिहास
आनी उपमंडल से 3 किलोमीटर दूर शमशरी गांव आज भी प्राचीन गांव के रूप में पूरे जिला कुल्लू में प्रख्यात है आउटर सिराज के इस गांव की प्राचीनता इसमें स्थित शमशरी महादेव के प्राचीन मंदिर के अस्तित्व के कारण है। यही वजह है कि शमशरी महादेव के नाम के प्रथम वर्ण से ही इस गांव का नाम शमशर पड़ा। शमशर का शाब्दिक अर्थ है। संधि-विच्छेद में शम-शर है। शम का अर्थ है एक विशेष जाति का वृक्ष और शर का अर्थ है तलाब।
प्राचीन इतिहास के अनुसार शमशरी महादेव की उत्पत्ति के बारे में कहा गया है की शमशर के पास बह रही जलोड़ी नदी के साथ में एक घाट पर एक ग्वाला अपनी गाय कमांद गांव से वहां पर चराने के लिए लाता था माना जाता है कि जब गाय उस घाट पर आती थी । वहां पर शम के पेड़ के नीचे एक पत्थर पर वह अपने थनो से दूध देती थी।परंतु जब भी ऐसा होता तो उस समय ग्वाले को नींद आ जाती । शाम को वह ग्वाला जब भी घर जाता तो शाम को उस गाय के दूध ना देने के कारण उसका मालिक उसे गालियां देता था। उस गाय के घर पर दूध ना देने का कारण उन्हें पता नहीं चल रहा था। अगले दिन मालिक ने ग्वाले के सिर की चोटी से एक रस्सी बांध कर वह रस्सी गाय को भी बांध दी। जब दिन को वह ग्वाला सो रहा था तो जैसे ही गाय उस पेड़ की ओर चल पड़ी तो उस ग्वाले की नींद खुली वह उस गाय के पीछे गया और उस दिन उसने प्रत्यक्ष रूप में देखा की शम के पेड़ के नीचे पत्थर पर गाय स्वयं ही दूध दे रही थी।यह बात घर आकर ग्वाले ने मालिक को बताई। उसी रात मालिक को स्वप्न हुआ की जहां तुम्हारी गाय दूध देती है वहां पर खुदाई करो। यह बात मालिक ने अगले दिन गांव वालों को बताई तथा गांव वालों ने उस जगह पर जाकर शम के वृक्ष के नीचे उस जगह की खुदाई करने के पश्चात वहां पर एक शिवलिंग प्राप्त हुआ। इस शिवलिंग को पहाड़ी पर स्थापित किया गया।
अब प्रश्न यह उठता है कि जो शर का अर्थ है जोकि तलाब। जहां पर पानी इकट्ठा होता है जोकि शमशेर से 28 किलोमीटर दूरी पर स्थित सरेउलसर नामक स्थान पर है जहां पर माता बूढ़ी नागिन का मंदिर भी है
वहां पर एक गद्दी अपनी भेडे चरा रहा था तथा उसकी गादन माता के मंदिर में माता से मन्नत मांग रही थी। उसने माता से यह मन्नत मांगी की यदि उसके यहां एक सुंदर पुत्र जन्म ले वह अपनी सोने की बालियां ( ब्रागर) माता को भेंट स्वरूप देगी । और माता ने उसकी मन्नत पूरी की और उसे एक सुंदर बालक दीया। उसने वह वालिया माता को भेंट स्वरूप दे दी।कुछ समय के बाद वह जब शमशर के पास में जलोड़ी नदी के किनारे के तट पर अपनी भेड़े चरा रही थी तो उसे प्यास लगी जैसे ही वह पानी पीने गई।उसके मन में हीन भावना आ गई वह सोचने लगी की उसके यहां पुत्र तो होना ही था वह वालिया ऐसे ही दे दी जैसे ही वह पानी पीने लगी वह वाली उसके हाथ में आ गई तथा उसके पुत्र की मृत्यु हो गई। उसकी हीन भावना के कारण माता ने उस की बालियां अस्वीकार कर ली। इसी संदर्भ में जो शर शब्द है।उसे शमशर के साथ जोड़ दिया गया इसलिए यहां का नाम शमशर पड़ा।आज कल शमशर में महादेव का विशाल भवन है
जो पुराना मंदिर था विक्रमी संवत के अनुसार वह मंदिर 2000 साल पुराना था। लेकिन अब यहां पर एक साल पहले नए मंदिर का निर्माण हुआ है तब से लेकर आज तक कमांद गांव से माघ के महीने में वहां के लोग शिवलिंग के ऊपर चढ़ाने के लिए घी लाते हैं। तथा जिसे पुजारी द्वारा शिवलिंग पर लगाया जाता है। यह कहा जाता है कि जब इस शिवलिंग को स्थापित किया गया उस समय यहां पर सिर्फ एक कुम्हार परिवार रहता था और शिवलिंग की पूजा करने के लिए उन्होंने दलाश के निकट रिवाड़ी गांव से एक ब्राह्मण के लड़के को वहां से कीलटे मैं वहां से शमशर के लिए लाया गया और उस ब्राह्मण द्वारा यहां पर शिवलिंग की पूजा की गई और उसी के वंशजों दोवारा शमशर गांव को बसाया गया। आज भी शमशरी महादेव के दर्शन करने भक्तगण दूर-दूर से आते हैं। यह भी कहा जाता है कि जो भी महादेव से सच्चे मन से मनोकामना करता है महादेव उसकी मनोकामना पूरी करते हैं शमशरी महादेव के प्रमुख मेला है आनी का मेला, धोगी की बूढ़ी दिवाली, यह महादेव के मुख्य मेले हैं। इसके साथ साथ महादेव का सत्रआडा भी होता है यह 5 वर्ष बाद या 7 वर्षों बाद होता है। इसमें महादेव अपने पुराने स्थानों का भ्रमण करता हैं। यह भ्रमण लगभग 3 महीने का होता है जिनमें प्रमुख गांव है धोगी, कराना, चनोग, खादवी, लडागी, जाओ, कोहिला, खुन्न, प्रकोट, बटाला, शगागी, गाड़ और डीम, इन स्थानों की यात्रा मे शमशरी महादेव मंदिर से 3 महीनों में बाहर रहते हैं पूरे 3 महीनों बाद शमशरी महादेव अपने मंदिर में पहुंचते हैं यह थी 3 गढ़ के मालिक शमशरी महादेव का प्राचीन इतिहास आशा करता हूं की आप सभी को यह इतिहास पसंद आया
मनीष शर्मा
शमशर का स्थाई निवासी
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