ईश्वर को ढूंढने के लिए करोड़ों रुपए दान करने की ज़रूरत नहीं होती, यदि मन में अटूट विश्वास हो तो वे 5 रूपए में भी मिल सकते हैं। Faith in God Motivational Story In Hindi
9 साल का एक बच्चा 5 रूपये का सिक्का मुट्ठी में लेकर एक दुकान पर जाकर पूछने लगा
Faith in God Motivational Story In Hindi
--क्या आपकी दुकान में ईश्वर मिलेंगे?
दुकानदार ने यह बात सुनकर उस लड़के पर हंसने लगे और बच्चे को पागल कह कर दुकान से निकाल दिया।
बच्चा पास की दुकान में जाकर 5 रूपये का सिक्का लेकर चुपचाप खड़ा रहा।
दुकानदार-- ए लड़के.. क्या चाहिए
लड़के ने उसे ₹5रूपये दिए
दुकानदार ने कहा
5रूपये में तुम क्या चाहते हो?
-- मुझे ईश्वर चाहिए। आपकी दुकान में है?
दूसरे दुकानदार ने भी भगा दिया।
लेकिन, उस बालक ने हार नहीं मानी। एक दुकान से दूसरी दुकान, दूसरी से तीसरी, ऐसा करते करते बाजार की सभी दुकानों के चक्कर काटने के बाद एक बूढ़े दुकानदार के पास पहुंचा। उस बालक ने उस बूढ़े दुकानदार को ₹5 रुपये दिए और उस बूढ़े दुकानदार ने पूछा, तुम्हे ₹5 रुपये का क्या चाहिए
बालक ने कहा-----
मुझे ईश्वर चाहिए उस बूढ़े दुकानदार ने कहा
तुम ईश्वर को क्यों खरीदना चाहते हो? क्या करोगे ईश्वर लेकर?
पहली बार एक दुकानदार के मुंह से यह प्रश्न सुनकर बच्चे के चेहरे पर आशा की किरणें लहराईं ৷ लगता है की इसी दुकान पर ही ईश्वर मिलेंगे !
बच्चे ने बड़े उत्साह से उत्तर दिया,
इस दुनिया में मेरा पिता के अलावा मेरा और कोई नहीं है। मेरे पिता जी दिनभर काम करके मेरे लिए खाना लाते है। और अब अस्पताल में हैं। अगर मेरे पिता जी मर गए तो मेरा पालन पोषण कौन करेगा और डाक्टर ने कहा है कि अब सिर्फ ईश्वर ही तुम्हारे पिता को बचा सकते हैं। क्या आपकी दुकान में ईश्वर मिलेंगे?
-- हां, मिलेंगे...! कितने पैसे हैं तुम्हारे पास?
-- सिर्फ 5 रूपए।
-- कोई दिक्कत नहीं है। 5 रूपए में ही ईश्वर मिल सकता हैं।
दुकानदार बच्चे के हाथ से 5 रूपए लेकर सोचता है कि 5 रूपए में एक गिलास पानी के अलावा बेचने के लिए और कुछ भी नहीं है।
अगले दिन कुछ मेडिकल स्पेशलिस्ट उस अस्पताल में गए। बच्चे के पिता का आप्रेशन हुआ और बहुत जल्दी ही वह स्वस्थ हो उठीं।ट
डिस्चार्ज के समय कागज़ पर अस्पताल का बिल देखकर उस पिता के होश उड़ गए। डॉक्टर ने उन्हें आश्वासन देकर कहा, "टेंशन की कोई बात नहीं है। एक वृद्ध सज्जन ने आपके सारे बिल चुका दिए हैं। साथ में एक चिट्ठी भी दी है"।
वह व्यक्ति चिट्ठी खोलकर पढ़ने लगा, उसमें लिखा था-
"मुझे धन्यवाद देने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपको तो स्वयं ईश्वर ने ही बचाया है ... मैं तो सिर्फ एक ज़रिया हूं। यदि आप धन्यवाद देना ही चाहते हैं तो अपने बच्चे को दीजिए जो सिर्फ 5 रूपए लेकर नासमझो की तरह ईश्वर को ढूंढने निकल पड़ा। उसके मन में यह दृढ़ विश्वास था कि एकमात्र ईश्वर ही आपको बचा सकते है। विश्वास इसी को ही कहते हैं। ईश्वर को ढूंढने के लिए करोड़ों रुपए दान करने की ज़रूरत नहीं होती, यदि मन में अटूट विश्वास हो तो वे 5 रूपए में भी मिल सकते हैं।"
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